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RTI से खुलासा: देश को हिलाने वाले 'लोकपाल' में पिछले पांच साल में मात्र 3 को मिली सज़ा

नोएडा के समाजसेवी रंजन तोमर की आरटीआई के जवाब में कहा गया कि इस दौरान कुल 6534 केस लोकपाल के पास आये हैं, जिसमें से 6468 का निस्तारण किया जा चुका है. 3 केसों में ही सज़ा घोषित हुई है.

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  • 8 September 2024,
  • (अपडेटेड 8 सितंबर 2024, 09:27 PM)

एक समय देश को हिलाने वाली और भ्रष्टाचार से त्रस्त जनता में एक उम्मीद की किरण जगाने वाले लोकपाल के लागू होने के बावजूद पिछले पांच साल में मात्र तीन बड़े अधिकारीयों को सज़ा देने का आदेश भारत के लोकपाल ने दिया है. नोएडा के समाजसेवी रंजन तोमर की आरटीआई के जवाब में कहा गया कि इस दौरान कुल 6534 केस लोकपाल के पास आये हैं, जिसमें से 6468 का निस्तारण किया जा चुका है. 3 केसों में ही सज़ा घोषित हुई है. इसके आलावा भी आरटीआई के जवाब में इस अवधि में दाखिल केसों और उनकी स्थिति की जानकारी भी है. चौंकाने वाली बात है कि अंतिम बार सज़ा का आदेश सं 2020-21 में हुआ था जब तीन केसों में सज़ा सुनाई गई थी. 

भ्रष्टाचार पर वार करने में नाकाम दिखा लोकपाल 

तोमर ने कहा कि इन आंकड़ों से तो यह ही प्रतीत होता है कि लोकपाल के लिए अन्ना की लड़ाई बेकार ही गई. यह संस्था एक दंतहीन शेर की तरह रह गई लगती है , स्वयं अरविन्द केजरीवाल जो लोकपाल की लड़ाई के लिए मशहूर हुए , वह स्वयं ही भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल में हैं और आम जनता का विश्वास इस संस्था पर जमता हुआ नहीं दिख रहा , ऐसे में सरकार को कानून में बदलाव ज़रूर लाना चाहिए 

क्या कहता है लोकपाल कानून 2013 

कुछ सार्वजनिक कार्यकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच करने और संबंधित मामलों के लिए राज्यों के लिए संघ और लोकायुक्त के लिए लोकपाल की स्थापना का प्रावधान करना चाहता है. यह अधिनियम जम्मू और कश्मीर सहित पूरे भारत में फैला हुआ है और भारत के भीतर और बाहर “लोक सेवकों” पर लागू है. अधिनियम में राज्यों के लिए संघ और लोकायुक्त के लिए लोकपाल के निर्माण का प्रावधान है.

यह विधेयक 22 दिसंबर 2011 को लोकसभा में पेश किया गया था और 27 दिसंबर को लोकपाल और लोकायुक्त विधेयक, 2011 के रूप में सदन द्वारा पारित किया गया था. बाद में इसे 29 दिसंबर को राज्यसभा में पेश किया गया. मैराथन बहस के बाद, समय की कमी के कारण वोट नहीं हो पाया. 21 मई 2012 को, इसे विचार के लिए राज्य सभा की प्रवर समिति को भेजा गया. पहले विधेयक और लोकसभा में अगले दिन कुछ संशोधन करने के बाद इसे 17 दिसंबर 2013 को राज्यसभा में पारित किया गया था. इसे 1 जनवरी 2014 को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से स्वीकृति मिली और यह 16 जनवरी से लागू हुआ.

लोकपाल का अधिकार क्षेत्र 

लोकपाल के अधिकार क्षेत्र में प्रधान मंत्री शामिल होंगे, अंतर्राष्ट्रीय संबंधों, सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष से संबंधित भ्रष्टाचार के आरोपों को छोड़कर जब तक कि लोकपाल की पूर्ण न्यायपीठ और कम से कम दो-तिहाई सदस्य एक जांच को मंजूरी नहीं देते. यह इन-कैमरा में आयोजित किया जाएगा और अगर लोकपाल की इच्छा है, तो जांच के रिकॉर्ड प्रकाशित नहीं किए जाएंगे या किसी को भी उपलब्ध नहीं कराए जाएंगे. लोकपाल का मंत्रियों और सांसदों पर अधिकार क्षेत्र भी होगा, लेकिन संसद में कही गई बातों या वहां दिए गए वोट के मामले में नहीं. लोकपाल का क्षेत्राधिकार लोक सेवकों की सभी श्रेणियों को कवर करेगा.

लोकपाल की शक्तियां

1. इसमें अधीक्षण के अधिकार और CBI को दिशा देने की शक्तियां हैं.

2. यदि इसने CBI को एक मामला भेजा है, तो ऐसे मामले में जांच अधिकारी को लोकपाल की मंजूरी के बिना स्थानांतरित नहीं किया जा सकता है.

3. ऐसे मामले से जुड़े तलाशी और जब्ती अभियान के लिए CBI को अधिकृत करने की शक्तियां.

4. लोकपाल के पूछताछ विंग को एक सिविल कोर्ट की शक्तियों के साथ निहित किया गया है.

5. लोकपाल के पास विशेष परिस्थितियों में भ्रष्टाचार के माध्यम से उत्पन्न या प्राप्त संपत्ति, आय, प्राप्तियां और लाभ जब्त करने की शक्तियां हैं

6. लोकपाल में भ्रष्टाचार के आरोप से जुड़े लोक सेवक के स्थानांतरण या निलंबन की सिफारिश करने की शक्ति है.

7. लोकपाल के पास प्रारंभिक जांच के दौरान रिकॉर्ड को नष्ट करने से रोकने के लिए निर्देश देने की शक्ति है.